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Main chala dhundhne ek priya jan-मैं चला ढूंढने इक प्रिय जान

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मैं चला ढूंढने इक प्रिय जान  जिस पर ना किसी  का दवाब हो    भरे जब उड़ान आसमां में बिखर जाए कदमों के निशान। जिसमें हो संवेदनाओं का उफान जो लपक पड़े दूर क्षितिज से बचाने हर प्राणी की जान। जो पनाह देने में समझे अपनी शान हृदय से गुंजित होते हो हरदम मोहब्बत के गान। रुख से जिसके पलट जाए तबाही के बाण रखता हो सबका मान। जिसकी नज़र में हर प्राणी रखता हो उससे आत्मिक पहचान ताकि नमस्ते 🙏🏿कर के अपना बन जाए हर अनजान। दिखता है जिसे कण कण में भगवान कहलाए वो अदब इन्सान। शुक्रिया -ए- रब ! मैं चला ढूंढने इक प्रिय जान वो ही तो है इक अदब इन्सान।।  - नरेन्द्र सिंह राठौड़