Shawet Rang Ki Chunariya Meri–श्वेत रंग की चुनरिया मेरी

श्वेत रंग की चुनरिया मेरी सांवरिया मेरा रंगरेज उबाल उबाल कर पुष्प लताओं से पक्का रंग बनावे ब्रह्मांड की छटाओं से उसे सजावे रुक्मिणीजी के मन को भावे ओढ़ चुनरिया दिखाने को कैलाश पर मां अम्बे के पास जावे चुनर को देख देख उलट पलट चहुं दिशाओं में घुमावे चुनर में दाग एक ना पावे अलख ही अलख नज़र आवे सुन–सुन चुनर मेरी हवा के संग–संग उड़ –उड़ कैलाश के लगावे फेरी अर्द्धनारीश्वर रूप लेकर मेरी चुनर को पहनने में एक पल की लगावे नहीं देरी श्वेत रंग की चुनरिया मेरी सांवरिया मेरा रंगरेज रुक्मिणी जी रखे सहेज – सहेज मेरी चुनर बार – बार अपने भाग्य पर इट्ठलावे ओढ़ा कर चुनर मेरी रुक्मिणी जी को फाल्गुन में सांवरिया संग – संग एक दूजे पे रंग बरसावे करी कृपा चुनर पे मेरी फूली नहीं समावे जो जो रूप धरे धरा पर चेतना रूपी चुनर जब -जब मेरी रंगरेज मेरा सांवरिया को तब- तब बनावे दाग कोई छू ना पावे बार- बार पाकर नित नवेली चुनरिया मेरी मन ही मन ...