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Shawet Rang Ki Chunariya Meri–श्वेत रंग की चुनरिया मेरी

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श्वेत रंग की चुनरिया मेरी  सांवरिया मेरा रंगरेज उबाल उबाल कर  पुष्प लताओं से पक्का रंग बनावे ब्रह्मांड की छटाओं से  उसे सजावे  रुक्मिणीजी के मन को भावे ओढ़ चुनरिया  दिखाने को कैलाश पर  मां अम्बे के पास जावे चुनर को देख देख उलट पलट चहुं दिशाओं में घुमावे चुनर में दाग एक ना पावे अलख ही अलख नज़र आवे सुन–सुन चुनर मेरी हवा के संग–संग  उड़ –उड़ कैलाश के लगावे फेरी  अर्द्धनारीश्वर रूप लेकर मेरी चुनर को पहनने में एक पल की लगावे नहीं देरी श्वेत रंग की चुनरिया मेरी सांवरिया मेरा रंगरेज  रुक्मिणी जी रखे सहेज – सहेज मेरी चुनर बार – बार अपने भाग्य पर इट्ठलावे ओढ़ा कर चुनर मेरी   रुक्मिणी जी को  फाल्गुन में सांवरिया   संग – संग एक दूजे पे  रंग बरसावे   करी कृपा चुनर पे मेरी  फूली नहीं समावे   जो जो रूप धरे धरा पर  चेतना रूपी चुनर जब -जब मेरी  रंगरेज मेरा सांवरिया को  तब- तब बनावे  दाग कोई छू ना पावे  बार- बार पाकर  नित नवेली चुनरिया मेरी  मन ही मन ...

Aanand Lok – आनन्द लोक

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कर दे जो अंतर्यामी प्रभु को अपना अहमलोक दान  भले ही वो हो गृहस्थ या संन्यासी उसका घर या कुटिया बन जाता है  आनन्द लोक और वो उसका निवासी। मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)                    

Jeevan Sutra–जीवन सूत्र

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शक्कर जैसा हो जिसका शरीर मन हो उसका अविरल नीर। दोनों हो जब  एक दूजे में विलीन  कहते हैं उसे धीर, वीर और गंभीर।। मौलिक रचयिता : –नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Mahadev Hai Jo Mere Sartaj–महादेव है जो मेरे सरताज

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महादेव है जो मेरे सरताज आज कल और आज मन पंछी बन भर रहा परवाज ॐ की ध्वनि से गुंजित हर साज ब्रह्मांड के कण कण में  देख आलोकित नटराज भक्ति सागर में कमल पुष्प  लिए नर्तन कर रहे गजराज जंगल के प्राणी को जगा रहे सिंह नाद कर करके वनराज भक्ति रस में तल्लीन हुई गले मिलकर वृक्ष और लताएं आज चित की चिंता को लगी चिता  चेतना बन कर जड़ भी कर रहा नाच भीतर का बर्तन माँझ माँझ  छप्पन भोग के थाल सजाकर हर घर हर घड़ी हरि के हर को हर हर महादेव पुकार पुकार कर बुला रहा नर ही नारायण बन कर आज आनन्द भोग पा रहे  महादेव है जो मेरे सरताज  आज कल और आज। मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Mat Ho Man Mere Udas–मत हो मन मेरे उदास

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मत हो मन मेरे उदास जीने की ललक  बन के चिंगारी है तेरे आस पास  कोई नहीं तेरा खास तो क्या? तू बन जा अपना खासम खास मत हो मन मेरे उदास  बाधाएं  बाधा नहीं तू ठान ले जब तेरी इनके  समक्ष हार नहीं बन के हम राही  पार कर संसार का जंगल होगा तेरे हाथों  तेरा मंगल ही मंगल भर उड़ान  भले ही मौसम बने व्यवधान भीतर लगी आग को हवा लगने दे जिनको मान बैठा  अपनी कमजोरियां  उन्हें आज स्वाह होने दे शेष रहेगा प्रकाश  किलकारी भरेगी फिर से जीने की आस होगा इर्द गिर्द  निज प्रेम का वास देख राही ऊपर की ओर  छोड़ चल  पलायनवाद का छोर  तेरे स्वागत में छा गई चहुं दिशाओं में घटाएं घनघोर  हो रही बारिश मूसलाधार  आज तन मन से नहा कर खुशियों से भर ले निज संसार  आयेगा नहीं हार का विचार तेरे साथ खड़े होंगे वृक्ष देवदार सारा संसार बनायेगा तुझे अपना मेहमान थाली में होंगे स्वादिष्ट पकवान खाकर जिसे होगा तू बलवान मन तेरा उतरेगा अखाड़े में  बन के पहलवान बढ़ेगा तेरा संसार में मान मिलेगी तुझे खुशियों की खान देगा तू संसार को पैगाम जो हार कर नही...

Mai– मैं

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 :–: मैं:–: "मैं को मुक्ति  शाश्वत मैं  में ही मिल कर होती है तो  फिर मर कर क्यों ? जी कर क्यों नहीं?" मौलिक रचयिता:–  नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)                        

Shri Ram Mantra श्री राम मंत्र

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 जित हिये सर्वदा बसेही मोहिनी मूरत सांवली सूरत राम लला। तित हिये ते दूर रहि सबहुं बला ।। मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)