Mandeep–मनदीप

:–: मनदीप:–: मत कहे मन मेरे ,"दीए तले अंधेरा" ज्ञान रूपी घी को लेकर तू सदा कर इसे सिंचित रहेगा अखंड प्रज्ज्वलित जो औरों के लिए जलता है उसके तले रहता है केवल सवेरा ही सवेरा जिन जिनके भीतर होता है डर का डेरा लगाना चाहतें हैं वो सभी अपने इर्द गिर्द दीए का पहरा। मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)