Mai– मैं

:–: मैं:–: "मैं को मुक्ति शाश्वत मैं में ही मिल कर होती है तो फिर मर कर क्यों ? जी कर क्यों नहीं?" मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)
" ए जिंदगी तू ही बता तू क्या है? जिंदगी ने कहकशा लगाकर कहा , " मैं :– पेट की भूख , मुंह का पानी, खून की रवानी, श्वांसो की डोर , जज़्बातों का छोर और कुछ नहीं ।" मौलिक रचयिता:–नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत )