Aanand Lok – आनन्द लोक

कर दे जो अंतर्यामी प्रभु को

अपना अहमलोक दान 

भले ही वो हो

गृहस्थ या संन्यासी

उसका घर या कुटिया बन जाता है 

आनन्द लोक और वो उसका निवासी।

मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)
                   

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