" ए जिंदगी तू ही बता तू क्या है?
जिंदगी ने कहकशा लगाकर कहा ,
" मैं :–
पेट की भूख ,
मुंह का पानी,
खून की रवानी,
श्वांसो की डोर ,
जज़्बातों का छोर
और कुछ नहीं ।"
मौलिक रचयिता:–नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत )
मैं मौज का मजा दिन रात लेता हूं जिंदगी को बनाकर बिछौना मौत को चादर बनाकर स्वप्न सुंदर देखता हूं मौत के साथ खो –खो और जिंदगी के साथ कबड्डी रोज खेलता हूं जो डालेगी गले में हार मेरे उसके संग दौड़कर जाऊंगा सौगंध मैं खाता हूं वचन के खातिर जीता हूं और मरता हूं शाश्वत क्रीड़ा के संग उल्लास का उत्सव मनाता हूँ। :– नरेन्द्र सिंह राठौड़
जान से प्यारी जान हमारी है देख देख के जिनको दिल की बगियां में उड़ जाती तितलियां सारी हैं इश्क में हमने बाजी मारी है जान से प्यारी जान हमारी है ठुमक ठुमक के चलती है कायनात हिल जाती है देख देख के जिनको स्वर्ग की अप्सराएं इठलाती हैं जान से प्यारी जान हमारी है इश्क में डूबकर अश्क गिराती है दिल के बीच में दरिया बहाती है आ आ कर अप्सराएं श्रृंगार कराती है स्वर्ग से ला ला कर उबटन लगाती है जान से प्यारी जान हमारी है जान को लेने जा रही बारात हमारी है बैंड बाजे के आगे नाच रही दुनियां सारी है लाल रंग के लहंगे में लग रही प्रियतमा प्यारी है हाथों में रची महंदी बड़ी न्यारी है जान से प्यारी जान हमारी है जान से प्यारी जान हमारी है देख देख के जिनको दिल की बगियां में उड़ जाती तितलियां सारी हैं जान से प्यारी जान हमारी है हाँ जान हमारी है। :– नरेन्द्र सिंह राठौड़
गम के बादल छंट जाएंगे आशा की किरण दस्तक देगी तुझे पढ़ना होगा आज ज़माना अपना नहीं है तो क्या कल तेरा अपना मुकाम होगा तुझे पढ़ना होगा जो करे मेहनत उसे कभी ना हारते देखा हर दिन मने दिवाली इस खातिर ज्ञान का दीपक जलाए रखना होगा तुझे पढ़ना होगा आंच ना लगा पाए कोई अपना दामन बचाना होगा तुझे पढ़ना होगा आज है हर कोई बेगाना तो क्या समेट कर अपने दर्द को आगे बढ़ना होगा कलम की स्याही से अपना नसीब खुद लिखना होगा तुझे पढ़ना होगा। - नरेन्द्र सिंह राठौड़
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