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Mat Ho Man Mere Udas–मत हो मन मेरे उदास

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मत हो मन मेरे उदास जीने की ललक  बन के चिंगारी है तेरे आस पास  कोई नहीं तेरा खास तो क्या? तू बन जा अपना खासम खास मत हो मन मेरे उदास  बाधाएं  बाधा नहीं तू ठान ले जब तेरी इनके  समक्ष हार नहीं बन के हम राही  पार कर संसार का जंगल होगा तेरे हाथों  तेरा मंगल ही मंगल भर उड़ान  भले ही मौसम बने व्यवधान भीतर लगी आग को हवा लगने दे जिनको मान बैठा  अपनी कमजोरियां  उन्हें आज स्वाह होने दे शेष रहेगा प्रकाश  किलकारी भरेगी फिर से जीने की आस होगा इर्द गिर्द  निज प्रेम का वास देख राही ऊपर की ओर  छोड़ चल  पलायनवाद का छोर  तेरे स्वागत में छा गई चहुं दिशाओं में घटाएं घनघोर  हो रही बारिश मूसलाधार  आज तन मन से नहा कर खुशियों से भर ले निज संसार  आयेगा नहीं हार का विचार तेरे साथ खड़े होंगे वृक्ष देवदार सारा संसार बनायेगा तुझे अपना मेहमान थाली में होंगे स्वादिष्ट पकवान खाकर जिसे होगा तू बलवान मन तेरा उतरेगा अखाड़े में  बन के पहलवान बढ़ेगा तेरा संसार में मान मिलेगी तुझे खुशियों की खान देगा तू संसार को पैगाम जो हार कर नही...

Mai– मैं

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 :–: मैं:–: "मैं को मुक्ति  शाश्वत मैं  में ही मिल कर होती है तो  फिर मर कर क्यों ? जी कर क्यों नहीं?" मौलिक रचयिता:–  नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)                        

Shri Ram Mantra श्री राम मंत्र

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 जित हिये सर्वदा बसेही मोहिनी मूरत सांवली सूरत राम लला। तित हिये ते दूर रहि सबहुं बला ।। मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Braham; mere parivartan ! ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन !

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ब्रह्म, मेरे परिवर्तन ! करते रहते हैं प्रकृति में सतत् परिवर्तन  बचपन , यौवन और वृद्धावस्था  तय करता है हर कोई मार्ग एक है सबका सृजन होकर प्राप्त करना है , निश्चित विसर्जन ! कर्ता है, ब्रह्म ;मेरे परिवर्तन ! एक ही अवस्था में रह कर कौनसा कर रहा तू योग निज स्वरूप में  कर ले , ब्रह्म ;मेरे परिवर्तन ! के संग संयोग चहुं दिशाओं से सुन्दर लगेगा मृत्यु लोक पीड़ा में भी दिखेगी ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन ! की क्रीड़ा  स्वतः तेरे कर्म होंगे अग्रसर  करने को  भीतर परिवर्तन का असर ये ही  है ,पूर्ण निष्काम भक्ति ! जुड़ी हुई है तुझ से सतत्  ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन ! की शक्ति  नित्य प्रकृति के नृत्य  और ऊर्जा के रूपांतरण में कर सके तो कर ले ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन ! के दर्शन नहीं करना पड़ेगा तुझे भक्ति  में कोई भी प्रदर्शन  रहते है सदा साथ जो तेरे बाहर और भीतर ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन ! मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Dekho! Kaun Ja Raha Hai?–देखो! कौन जा रहा है?

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देखो! कौन जा रहा है? चांदनी रात  में तीव्र प्रकाश जा रहा है खिड़कियों को बंद करके सोने वाले  बाहर देख कर झांक जरा सत्य जा रहा है ले ले तू भी उसकी आंच जरा  तप जा रहा है जो संसार के झंझावतों में ना उलझे निडर जा रहा है जो पीड़ा को भी पछाड़ दे सहनशील जा रहा है जो अपना समस्त लूटा दे दानवीर जा रहा है  जो शरणागत की रक्षा करे योद्धा जा रहा है जो जिज्ञासा को शांत कर दे गुरु जा रहा है जो हर घड़ी साथ दे  साथी जा रहा है जो मन को जीत ले मंजीत जा रहा है जो चिंताओं से मुक्त कर दे चिंतक जा रहा है जो सदाचार से भर दे चरित्र जा  रहा है आओ! मिल कर स्वागत करे ! भारत जा रहा है।  मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Amarta– अमरता

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 :–: अमरता:–: ************ " जो अपनी गलतियों से नहीं सीखता वो अपना अस्तित्व खो देता है और जो अपनी गलतियों से सीखता है वो अपने अस्तित्व को अमर कर देता है।" :– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Sanatan Ke Sath Sath :सनातन के साथ – साथ

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 :–: सनातन के साथ –साथ :–: ************************* सनातन में होते नहीं तेरे–मेरे  साथ–साथ , सात–सात, जन्मों तक साथ निभाने के लिए  अग्नि को साक्षी मानकर खाए जाते हैं फेरे फिर थोड़े से मनमुटाव में क्यों जाएं न्यायालय के द्वारे पैदा कर दरार रिश्ते कर दिए सारे खारे सनातन से हो सकता है केवल उसी का लगाव जो पसंद नहीं करता कभी अलगाव। मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)