Braham; mere parivartan ! ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन !
ब्रह्म, मेरे परिवर्तन !
करते रहते हैं प्रकृति में सतत् परिवर्तन
बचपन , यौवन और वृद्धावस्था
तय करता है हर कोई
मार्ग एक है सबका
सृजन होकर
प्राप्त करना है , निश्चित विसर्जन !
कर्ता है, ब्रह्म ;मेरे परिवर्तन !
एक ही अवस्था में रह कर
कौनसा कर रहा तू योग
निज स्वरूप में
कर ले , ब्रह्म ;मेरे परिवर्तन ! के संग संयोग
चहुं दिशाओं से सुन्दर लगेगा मृत्यु लोक
पीड़ा में भी
दिखेगी
ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन ! की क्रीड़ा
स्वतः तेरे कर्म होंगे अग्रसर
करने को भीतर परिवर्तन का असर
ये ही है ,पूर्ण निष्काम भक्ति !
जुड़ी हुई है तुझ से सतत्
ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन ! की शक्ति
नित्य प्रकृति के नृत्य
और ऊर्जा के रूपांतरण में
कर सके तो कर ले
ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन ! के दर्शन
नहीं करना पड़ेगा तुझे
भक्ति में कोई भी प्रदर्शन
रहते है सदा साथ जो तेरे
बाहर और भीतर
ब्रह्म ; मेरे परिवर्तन !
मौलिक रचयिता:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)
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