Man tu itna kyon ghabraye -मन तू इतना क्यों घबराए
बाहें फैला कर
बुला रहा है
बुला रहा है
खुला गगन
:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)
हर प्राणी है अपनी धुन में मग्न
नाच नाच कर दिखा रहा भाव भंगिमाएं
मन तू इतना क्यों घबराएंं
निकल कर
आमंत्रण दे रही है
घनघोर घटाएं
मन तू इतना क्यों घबराएंं
निकल कर
आमंत्रण दे रही है
घनघोर घटाएं
सरहद पे सैनिक चला करते है अपनी भुजा फड़काए
मन तू इतना क्यों घबराएं।
महक रही है चहुं दिशाओं में
महक रही है चहुं दिशाओं में
पर्वतों पर पुष्प घटाएं
चढ़ रही हर डाली पे लताएं
मन तू इतना क्यों घबराएं।
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संगी-साथी रिश्ते-नाते साथ है तेरे
फिर क्यूं रहे तू भला उखड़े उखड़े
व्यापार में होते रहते हैं
मन तू इतना क्यों घबराएं।
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संगी-साथी रिश्ते-नाते साथ है तेरे
फिर क्यूं रहे तू भला उखड़े उखड़े
व्यापार में होते रहते हैं
कभी मुनाफे कभी घाटे
उनसे दूर तू क्यों भागे
रह सदा चट्टान की तरह डटे
उनसे दूर तू क्यों भागे
रह सदा चट्टान की तरह डटे
मन तू इतना क्यों घबराएं।
:– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)
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