Kar gujar aisa judge ki kalam na tute -कर गुजर ऐसा जज की कलम ना टूटे

कर गुजर ऐसा जज की कलम ना टूटे। 
बसा लेता क्यों नहीं
दिल में रब को
जो खड़ा रहता है
तेरे साथ
विवेक बन कर के

जब लिया जब
जन्म तूने
मां बाप ने नाजों से पाला था
और बड़ा होगा बेटा मेरा
बनेगा
बुढ़ापे का सहारा मगर
क्या पता था
करेगा इक दिन
बुरी संगत और तेरे हाथों
होगी इंसानियत शर्मसार
और बनेगा तू एक
रोड़ा

जिसने किसी की रूह को दरिंदा तो कभी 
हत्यारा बनकर तोड़ा
अब कहता है जज से तू भैया
कर दे मुझ पर दया
मगर ये अब हो नहीं सकता

मैं जज हूं
कहलाता हूं कानून का रखवाला
जो करता है मानवता को चकनाचूर
उसके साथ रहम की उम्मीद हो जाती है दूर

फिर कहता हूं
कर गुजर ऐसा जज की कलम ना टूटे।

- नरेन्द्र सिंह राठौड़

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