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Aansuon ko bahne do! आंसुओं को बहने दो ! let the tears flow !

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आंसुओं को बहने दो  उसको गड्ढा नहीं दरिया बनने दो  जो मन में तूफान है उसे  गुजरने दो  वक़्त को करवट लेने दो  उत्कंठा  को उजागर होने दो  प्यासे को पानी तक जाने दो  मन को बाज की तरह परवाज  भरने दो  वक़्त के साथ खुद को ढलने दो  बच्चे को पांव पे खड़ा होने दो  दरिया को सागर तक जाने दो  घाव पर मरहम लगाने दो  वक़्त  के साथ  खुद को जीतने दो  कामयाबी को कस कर पकड़ने दो  सागर से बादल को उड़ान भरने दो  खुद को दवा बन जाने दो  वक़्त को मीत बन जाने दो  :- नरेन्द्र सिंह राठौड़ 

Main Bhagat Singh मैं भगत सिंह

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मैं भगत सिंह  फैंका कचहरी में अहिंसक बम  जानकर मौत है इसका परिणाम  लाएगी सारे भारत में इन्कलाब काटी मैंने  मौत से पहले जो रातें  उनमें देखा  सारे हिंदुस्तान को  आजादी के गीत गाते वतन के लिए जां निसार  हो चाहे कुदरती या फैंदे को सहती  हूं नही मैं अमर  इसी सोच को बना आधार  सुखदेव राजगुरु के संग फंदे को किया  चूम कर स्वीकार  लगा फंदा जब गले आरजू थी दिल में यही  सम्पूर्ण भारत में इन्कलाब का जुलूस निकले  मिले आजादी  भारत ना सहेगा अब गुलामी चहुं दिशाओं में बजेगा आजादी के दीवानों का डंका जलेगी आज फिरंगियों की लंका  बहुत हुआ जुल्मों सितम गूंजेगा गीत हर गली हर नुक्कड़  वन्दे मातरम् !वन्दे मातरम् ! इसी बात को लेकर  राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह ने  मौत को गले लगाने की  खाई थी कसम  ताकि अखंड रहे मेरा भारत  हर क्षण  हर दम  रहेगा अब सदा आबाद  बसा कर दिल में हर कोई इन्कलाब जिंदाबाद ! :– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत )

Sheesh! शीश

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मैं  सबला जिसके  पिता हाड़ा  उनका मान कम न होने देगी ये क्षत्राणी बाला  आज भेजूंगी राव चूड़ा को भवानी का तेज  देख कर कर देंगे मुगलों को निस्तेज । आज मांगे है चूड़ा सेनानी सिर काट दे दियो क्षत्राणी देखेंगे जब अमर सेनानी  भरतार टूट  पड़ेंगे मुगलों का करने संहार । देख  अमर सेनानी  राव चूड़ा ने भरी हुंकार  दुश्मन को  दिया फाड़ हुई शिकस्त मेवाड़ के हाथों मुगलों की, बार बार हर बार । औरंगजेब गया हरम में रोने लगा मुंह फाड़ – फाड़  बेगमों ने पूछा," क्या हुआ हुजूर ए आला !" बोला औरंगजेब , "मेवाड़ का हर सुरमा है मतवाला  उन्होंने  मुगलिया सेना को चीर डाला  जब तक रहेगा मेवाड़  गूंजती रहेगी हिंदुआ सूरज की आन बान और शान।    :– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Ye kar ye na kar !ये कर ये ना कर!

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ये कर ये ना कर कहता मन हर किसी से जरूर है जिस की तलाश में भटक रहा है  तेरा मन  उसे राह दिखाने वाला और कोई नही  परमात्मा होकर खड़े देने को आशीर्वाद अपना भरपूर है। जहां में भरी है उलझनें ही उलझनें जिंदगानी का गणितज्ञ बनकर हल करता जरूर है  इन्सान बना कर भेजा तुझे  इंसान बन कर ना रह सका तो दोष औरों पर मत डालना ये कर ये ना कर जो  कहता रहता तुझे सदा  उन परमात्मा से तू दूर है । कर आज बन के गोपी अपने ही संग रास परमात्मा को खड़ा पाएगा सदा अपने आस पास  जो करता है घट घट में निवास  देने को पैगाम " ये कर ये ना कर "  रख मुझ पे  अडिग विश्वास  होगा नहीं कभी तू बुराइयों का दास। नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Kyon bana tu barud? क्यों बना तू बारूद?

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क्यों बना तू बारूद? रखा मां ने तुझे कोख में होगा बड़ा तो रखेगा उसे मौज में  नहीं देखा था सपना  भर्ती हो जाएगा जिहादियों की फौज में  बन कर फिदायीन निकलेगा तू  बांधकर बारूद  लेकर जान देकर जान  क्यों डूबों रहा मां को आंसुओं में ? सोच रहा है तू काम कर रहा है  धांसू  मगर आज तो  खुदा की आंख से भी बह रहे  अनवरत आंसू   खुदा के लिए  बारूदी चोला  फेंक  अम्मीजान अब्बुजान फरियाद कर रहे घुटने  टेक  होगा खुश खुदा  जब बारूद से नहीं करेगा  किसी की भी जान को जुदा  बारूद की भी इल्तजा है यही  बन वो दियासलाई जिसकी सहायता से जले चूल्हा  चढ़े कढ़ाई  कोई खाए बना कर हलवा  कोई खाए  बना कर रस मलाई होकर बारूद जीने की सीख सिखाई  ना कर खुदा की खुदाई के साथ बेवफाई  रुखसत हो जहां से कभी  लेकर जाना निज चहरे पे मुस्कान  ना की रूलाई तभी होगी तेरी जहां में वाही ! वाही ! – नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Sanwariya se kar le tu het सांवरिया से कर ले तू हेत Love to lord Krishna

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सांवरिया से कर ले तू  हेत  उपजाऊ हो जाएगा तेरे मन का खेत  जिसमे से पैदा होगे संतोष के फल  तेरी भव बाधा जाएगी टल।  कोई नहीं करेगा जब एक दूजे के संग खल  प्रेम की बांसुरी तले नाचेगा तब हर नारी हर नर उत्सव से प्रफुल्लित होगा जब हर किसी का मन  मन करेगा तब आशान्वित विचरण। चहुं  दिशाओं में पुष्प वृष्टि करेगा जब नील गगन इंसानियत का पैगाम देगा  तब मेरा वतन तेरा वतन। रौद्र दीवारें तोड़कर एक दिन होंगे एक मैं एक तुम एक दूजे की सलामती हेतु खुलेंगे  मेरे लभ तेरे लभ  करेगा हर दुआ कबूल  मेरा रब तेरा रब।। :– नरेन्द्र सिंह राठौड़

Dharti se chori ho gya insan– धरती से चोरी हो गया इंसान–The Theft of human from Earth 🌎!

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धरती से चोरी हो गया इंसान  दया, क्षमा और करुणा थी जिसकी पहचान  धरती का था वो वरदान  दौड़ पड़ता था पीड़ित की सुन करुण पुकार  बातों में जिसके बरसता था प्यार  लेकिन लेकर अब मन में नफरती सोच हजार मिटाने को आतुर है मोहब्बत से भरा संसार   कभी एक दूजे के संग मनाते थे उत्सव  और त्यौहार  अब डालने लगा है उनमें विघ्न हजार   कर रहा है चहुं दिशाओं में नफरती सोच का प्रचार–प्रसार  रखना होगा सर्वधर्म समभाव बार – बार हर बार  पैदा ना हो पाएं क्षण भर आपसी सौहार्द में कोई दरार धरती से चोरी हो गया इंसान  नजर आते है अब सब प्राणी लाचार  कभी था सुनहरा सारा संसार जिसमे अठखेलियां मारा करता था  प्रकृति संग इंसान  हे  जगत के पालनहारे! धरती को दो ! खोजकर ,"फिर वही इंसान " दया, क्षमा और  करुणा थी जिसकी पहचान ।।  :– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)