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Showing posts from December, 2019

Kisan ka jeevan geet -किसान का जीवन गीत

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आने को है मौसम बोने को  किसान की रूह खिल उठती है और निकल पड़ता है खेत में वो कुली से खरपतवार को मिटाने ।   तत्पश्चात उमड़ घुमड़ आए बादल बरसने लगे खेत मिले सजे धज्जे  हुई खेत में भरपूर नमी किसान ने बीज बोने की ठानी निकल पड़ा लिए हल रखी दूरी इतनी विकसित हो सके फल नमी को लेकर अंकुरित हुए बीज बचपन कों छोड़ हुए किशोर फिर खरपतवार ने हमला किया किसान का हृदय रोया लिए कुदाल कंधे पे खेत की ओर दौड़ पड़ा एक एक खरपतवार को खेत से बाहर निकाल डाला अब किसान देखने लगा तकती निगाहों से इन्द्र की ओर और पुकार करने लगा सुन किसान की करुण पुकार खेत पे काली घटाओं ने घेरा डाला पानी बरसने लगा झम झम किसान का मन मयूर करने लगा छम छम तत्पश्चात पौधे प्राप्त यौवन को बालियों ने घेरा डाला यकायक किसान कह उठा खूब होगा जमाना पक्की फसल काटा किसान पैदावार हुई भरपूर किसान ने नहीं की प्रभु की चौखट पर जाने में देर कहा ," पहला भोग आपका                            फिर मेरे परिवार का।" -नरेन्द्र सिंह ...

Chhod fauji apna pariwar -छोड़ फ़ौजी अपना परिवार सरहद पे बुलाए तेरा वतन !

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छोड़ फ़ौजी  अपना परिवार सरहद पे बुलाए तेरा वतन। कोई घुषपैठियाा  गुस ना जाए मिटा ना दे देश का अमन। छोड़  फ़ौजी अपना परिवार सरहद पे बुलाए तेरा वतन भारत माता जानती है लाडले! जब चीर के निकलती है गोली बदन से तुझे भी  होती है जलन जब गिरता है लहू बदन से रोता है भारत माता का तन मन लेकिन तेरा अटल समर्पण नहीं होने देता विचलित एक पल छोड़ फ़ौजी अपना परिवार सरहद पे बुलाए तेरा वतन भरती है मांग तेरी दुल्हन कामना करती है बनी रहे सदा सुहागन जब देखती दर्पण वो याद कर कर के रोता है उसका तन मन फरियाद करती है रब से सदा कब छुट्टी पे आयेगा उसका साजन त्यौंहार मनाएगा इस बार उसके संग मगर तभी बुलावा आया है सरहद से मुश्किल में है अपना वतन छोड़ फ़ौजी अपना परिवार सरहद पे बुलाए तेरा वतन। भारत माता जानती है उसका लाडला मनाए हैपी न्यू ईयर । मगर तभी दुश्मन की लगती है बुरी नजर छुट्टी छोड़ निकल पड़ता है भारत माता का जांबाज़ पुत्र सरहद पर क्योंकि कहती है सरहद छोड़ फ़ौजी अपना परिवार सरहद पे बुलाए तेरा वतन । -नरेन्द्...

Aaya hai nya sal-आया है नया साल

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आया है नया साल।  खुशियां लाया अपार। सपने होंगे साकार। ईश्वर का रहेगा उपकार। दिल में नहीं रहेगी मलाल। मिलेगा सबको प्यार। संस्कृति का होगा प्रचार। हर तरफ होगा सदाचार। अपराध पर होगा कानून का प्रहार। मिट जायेगा अत्याचार। निवेश को बढ़ावा देगी सरकार। कोई ना रहेगा अब बेरोजगार। आशा की लौ से दूर होगा अंधकार। सुशोभित होंगे आशान्वित विचार। आओ करे मिल जुल कर नव वर्ष का सत्कार।     - नरेन्द्र सिंह राठौड़ 

ma meri ma tu kitni pyari hai -मां मेरी मां तू कितनी प्यारी है

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मां मेरी मां तू कितनी प्यारी है।   सारी दुनियां से तू न्यारी है। रहा जब कोख में तब तूने कितनी पीड़ा झेली है। आया जब दुनिया में तब काला टीका लगाकर नजर उतारी है। खुद गीले में सोकर मुझे सूखे में सुलाकर पाली है। मां मेरी मां तू कितनी प्यारी है। सारी दुनियां से तू न्यारी है। चलने लगा जब घुटने के बल तो गिरने पर चूल्हा छोड़ के मुझे संभाली है। चलने लगा पैरों के बल अंगुली थामकर तू संग चली है। मां मेरी मां तू कितनी प्यारी है। सारी दुनियां से तू न्यारी है। जल ना जाए मुंह मेरा रोटी के ग्रास को फूंक  मारी है। जानें लगा स्कूल जब जल्दी उठकर टिफिन की की तैयारी है। मां मेरी मां तू कितनी प्यारी है। सारी दुनियां से तू न्यारी है। पढ़  लिख कर बड़ा हुआ बना  भविष्य मां अब तेरी नहीं मेरी सेवा की बारी है। मां मेरी मां तू कितनी प्यारी है। सारी दुनियां से तू न्यारी है। - नरेन्द्र सिंह राठौड़

Man tu itna kyon ghabraye -मन तू इतना क्यों घबराए

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बाहें फैला कर  बुला रहा है खुला  गगन हर प्राणी है अपनी धुन में मग्न  नाच नाच कर दिखा रहा भाव भंगिमाएं  मन तू इतना क्यों घबराएंं  निकल कर आमंत्रण दे रही है घनघोर घटाएं सरहद पे सैनिक चला करते है अपनी भुजा फड़काए  मन तू इतना क्यों घबराएं। महक रही है चहुं दिशाओं में  पर्वतों पर पुष्प घटाएं  चढ़ रही हर डाली पे लताएं  मन तू इतना क्यों घबराएं। ; संगी-साथी रिश्ते-नाते साथ है तेरे फिर क्यूं रहे तू भला उखड़े उखड़े व्यापार में होते  रहते हैं कभी मुनाफे कभी घाटे उनसे दूर तू क्यों भागे रह सदा चट्टान की तरह डटे  मन तू इतना क्यों घबराएं। :– नरेन्द्र सिंह राठौड़ (भारत)

Manva pyar karta chal -मनवा प्यार करता चल

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मनवा प्यार करता चल बीते ना गमों में किसी का पल   दिलों से दूरियां मिटाता चल  मनवा प्यार करता चल। भूखे को खाना ,प्यासे को पानी और नंगे को कपड़ा बांटता चल मनवा प्यार करता चल। याद आए चुट्कुले कोई सुनाकर सबको हंसाता चल मनवा प्यार करता चल। बीमार मिले कोई मदद करता चल अंधकार को प्रकाश की लौ से मिटाता चल मनवा प्यार करता चल। प्राणवायु की कमी पड़े ना कभी आने वाली पीढ़ियों को वृक्षों  की सौगात देता चल मनवा प्यार करता चल। वृक्षों के झुरमुट से बदली को बरसने के लिए मजबूर  करता चल मनवा प्यार करता चल। हो जाए भरपूर अन्न और किसान हो जाए प्रसन्न मनवा प्यार करता चल। - नरेन्द्र सिंह राठौड़