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Jaihind! जयहिंद ! - Jaihind

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 :- जयहिंद!   तिरंगे का सम्मान है जयहिंद   भारत की पहचान है जयहिंद    विकास की उड़ान है जयहिंद  दिल की धड़कन है जयहिंद  सैनिक का पराक्रम है जयहिंद  आशा की किरण है जयहिंद  बहादुर का तिलक है जयहिंद  वीरांगना की गर्जना है जयहिंद   संजीवनी बूंटी है जयहिंद  श्वांसो की डोर है जयहिंद  वीरता का पैगाम है जयहिंद  धरा का स्वर्ग है जयहिंद कलम की पुकार है जयहिंद  भारत का संस्कार है जयहिंद  मानवता का सूत्रधार है जयहिंद  अमरता की सीढ़ी है जयहिंद  नौनिहालों की जन्म घुटी है जयहिंद आत्मा का उदघोष है जयहिंद  सत्य की जीत है जयहिंद  शेरों की दहाड़ है जयहिंद  अभिनन्दन है जयहिंद  अभिवादन है जयहिंद  विविधता में एकता है जयहिंद जयहिंद! जयहिंद! जयहिंद! :- नरेन्द्र सिंह राठौड़

Jivan-जीवन - Life

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 जीवन में कभी फूल है तो कभी कांटे   उतरे पार वो राही जो चले सदा आपस में बांटे आते है जीवन में उतार चढ़ाव   जैसे सागर में आता है  कभी भाटा  कभी ज्वार होता है पार जहाज वो ही जो खोए ना धीरज आपदा से घबरा कर  कभी नहीं बोता है बाग गुलाब का माली कांटो संग लिए फूल झूलती है हर  इक डाली तोड़ कर फ़ूल बनाने  को माला  लहू लुहान हो जाती है अंगुलिया  उसकी प्यारी देता नहीं माली कभी पौधे को गाली जानता है वो  ये कोई नहीं है साधारण पौधा करना नहीं पड़ता मुझे  इसके कारण कभी आत्मसम्मान का सौदा रखी लाज कुब्जा की तारणहार बने मेरे गोविंदा की धारण जब पुष्प माला हुआ तन सीधा जब कुब्जा का पुकार उठी! निहाल हुई आज मथुरा सांवरिया सरकार ने  पावन चरण धरा होने लगा चहुं दिशा में जय कारा आ गया तारण हारा हरे कृष्णा! हरे कृष्णा!    - नरेन्द्र सिंह राठौड़

Aya Diwali ka tyauhar-आया दिवाली का त्यौहार - Happy Diwali

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आया दिवाली का त्यौहार   सुख समृद्धि लाया अपार  जगमग जगमग हो रहा सारा संसार  लक्ष्मी जी के स्वागत को है तैयार। आया दिवाली का त्यौहार हो रही चहुं दिशाओं से धन की बौछार दिन दूनी  रात चौगुनी बढ़ रहा व्यापार खिल रही है हर चहेरे पे मुस्कान। आया दिवाली का त्यौहार लक्ष्मी जी की कर रहे छप्पन भोग से मनुहार देवता गण बरसा रहे गगन से पुष्प बौछार जन जन हो रहा प्रफुल्लित अपार। आया दिवाली का त्यौहार पहन कर नवीन वस्त्र लक्ष्मी जी की पूजा को तैयार रोशनी से जगमग जगमग हर घर संसार बच्चे छोड़ रहे फुलझडी बड़े छोड़ रहे अनार। आया दिवाली का त्यौहार चहुं दिशाओं में हो भाईचारे का प्रसार खुश रहे दुनियां का हर इंसान लक्ष्मी जी से है सबकी पुकार।     -  नरेन्द्र सिंह राठौड़

Satya ! सत्य ! - Truth

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सत्य करे जो धारण।  ईश्वर करे उसका पालन।।   सत्य रहता सदा निडर  नहीं करता भय कभी उसके मन में घर ।। सत्य पर चले हरिश्चंद्र राजा। उनकी याद में बजता है नौबत बाजा।। सत्य पर चले भक्त ध्रुव और प्रहलाद। पाया नारायण भक्ति का प्रसाद।। सत्य पर चले हनुमान। प्रभु राम - हृदय के बने मेहमान।। सत्य पथ पर चले पांडव। सारथी बनने को उत्सुक हुए माधव।। सत्य पथ पर चली मीरा। केशव ने हर ली हर पीड़ा।। सत्य पर चले मेवाड़ महाराणा। भारत वर्ष में फहराती है उनकी कीर्ति पताका।। सत्य पर चले अगर राजनीति। निश्चित है उस राष्ट्र की प्रगति।।        - नरेन्द्र सिंह राठौड़

Ghar-घर - home

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घर है एक बसेरा  जहां सुकून डालता है डेरा    हिल मिल कर रहते है सब हर ले जो मन की पीड़ा  दस्तक देता है रोज  आशान्वित सवेरा  मुस्कान देता है हर चहेरा गूंजती है जब बच्चों की किलकारी घर का कोना लगता है प्यारा प्यारा ले के गोद में  नन्हो को  बन जाता है हरेक मतवाला आते है उत्सव और त्यौहार खुशियों की  होती है बौछार बनते है मीठे मीठे पकवान मिठास डालती है जुबां पे डेरा सारे जहां में घूम के मीटे जहां थकान स्वागत को रहे जो सदा खड़ा वो है बस घर मेरा।       - नरेन्द्र सिंह राठौड़

Are mere pyare ! अरे मेरे प्यारे ! - Oh my dear

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अरे मेरे प्यारे ! बना के मन को अपना मीत     सुना ज़रा उसे प्यारा संगीत भूलाने को गमगीन बात बिछड़े ना सुनहरी याद बढ़ जरा आगे  देने खुदी का साथ चल मेरे साथी डग भर भर मिटाता चल मायूसियों को हर दर हर पल रख चींटी सा आत्म बल गिर गिर के पा लेती है मंज़िल इक पल आखिर तू है इक इंसान  ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ कृति में है तेरा स्थान फ़िर क्यूं रहे परेशान  लेगा जब तू ठान हरा के परेशानियों को बन जाएगा महान वतन करेगा तुझ पे अभिमान।   - नरेंद्र सिंह राठौड़

Lauta de mera bachpan a rab ! लौटा दे मेरा बचपन, ए रब ! - Childhood

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लौटा दे मेरा बचपन , ए रब !    मिट्टी का घरौंदा बनाऊं और मिटाऊं मार कर ठोकर जब तब दुश्मन नहीं होता कोई खेलते है डालकर गलबहियां सब।  लौटा दे मेरा बचपन , ए रब ! मन के होते थे राजा बजाते थे घर में आए मेहमानों का  बैंड बाजा बदल कर टीवी चैनल कार्टून चैनल मेरी मर्जी से लगाता। लौटा दे मेरा बचपन , ए रब ! ड्यूटी से जब आते पापा खोलता नहीं घर का दरवाजा जाओ दुकान पे लेकर  आओ ! मक्खन बड़े और रसगुल्ले पाओगे तभी मॉम संग मुझे मुख मेरा बिना फूले। लौटा दे मेरा बचपन , ए रब ! होती जब गर्मी खाते थे बर्फ के गोले झूले में झूलकर लेते थे  हिचकोले। लौटा दे मेरा बचपन , ए रब ! होती जब सर्दी खाते थे दूध संग जलेबियां मॉम बनाती थी पकोड़े धनिए की चटनी संग मुख में रखते  होले होले। लौटा दे मेरा बचपन , ए रब ! होती जब बारिश पानी में  तैराते कागज की  किश्तियां रेस में आगे जाने पर उछल उछल बजाता तालियां खाते सब भुट्टे लगाकर होड़ एक दाना भी पीछे ना छूटे। लौटा दे मेरा बचपन , ए रब ! मिटा के मनों की दूरियां एक दूजे के करीब रहे सब। - नरेन्...