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Showing posts from January, 2020

Jawan jawan hai vatan ka rakhwala -जवां जवां है वतन का रखवाला

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जवां जवां है वतन का रखवाला  जिसने डाला हाथ ख़िलाफ़ इंसानियत के उसे दरकिनार कर डाला। पूर्व हो या पश्चिम उत्तर हो या दक्षिण  आखरी सांस तक हिफाज़त में रखते है समर्पण जवां जवां है वतन का रखवाला जिसने डाला हाथ ख़िलाफ़ इंसानियत के उसे दरकिनार कर डाला। हौसले की उड़ान रुक ना पाएं जब तक दुश्मन ढेर ना हो जाएं जवां जवां है वतन का रखवाला जिसने डाला हाथ ख़िलाफ़ इंसानियत के उसे दरकिनार कर डाला। जो धमकी देता है हिंदुस्तान को एटम से कर देगा बर्बाद वो याद कर ले अपनी बीती हारों को अबकी बार नहीं रहेगी सिर उठाने की औकात फिर कहता हूं जवां जवां है वतन का रखवाला जिसने डाला हाथ ख़िलाफ़ इंसानियत के उसे दरकिनार कर डाला। -  नरेन्द्र सिंह राठौड़ 

Chal rahi chal tu kyon pichhe hate-चल राही चल तू क्यों पीछे हटे चल राही चल

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चल राही चल तू क्यों पीछे हटे चल राही चल चेतक घोड़ा था बेजोड़  महाराणा संग अकबर की सेना से लगा ली होड़ देखती रह गई अकबर की सेना मुंह मरोड़ चल राही चल तू क्यों पीछे हटे चल राही चल शिवाजी को औरंगजेब ने किया कैद मगर फल की टोकरी का पा ना सका भेद  औरंगज़ेब के सपने हुए चूर देख शिवाजी का साहस भरपूर चल राही चल तू क्यों पीछे हटे चल राही चल अंग्रेजों के बोरियां बिस्तर हुए गोल देख भारत की अहिंसा का जोर चल राही चल तू क्यों पीछे हटे चल राही चल पाकिस्तान की हुई हर बार हार झेल भारत की संगठित सेना का प्रहार चल राही चल तू क्यों पीछे हटे चल राही चल। -  नरेन्द्र सिंह राठौड़

Pukar pukar main thak chuki -पुकार पुकार मैं थक चुकी क्यों ना आए सैंया

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पुकार पुकार मैं थक चुकी क्यों ना आए सैंया बिताए ना बीते ये जालिम रतिया  करवटें बदलती रहती हूं मुख में दबाए अंगुलिया याद में तेरी बेसुध देख चिढ़ाती है सखियां पुकार पुकार मैं थक चुकी क्यों ना आए सैंया बिताए ना बीते ये जालिम रतिया दर्पण देख जब लगाती हूं बिंदिया तो याद आते हो तुम सैंया देख देख मेरे दिल की तड़पन रोती है मैया पुकार पुकार मैं थक चुकी क्यों ना आए सैंया बिताए ना बीते ये जालिम रतिया छुती हूं जब कान में झूमर हाथ में कंगना  भूल गई हूं कैसे पायल बजती है सजना पुकार पुकार मैं थक चुकी क्यों ना आए सैंया बिताए ना बीते ये जालिम रतिया  -  नरेन्द्र सिंह राठौड़

Dard ko mahsus kare wo insan kahan se laun -दर्द को महसूस करे वो इंसा कहां से लाऊं

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दर्द को महसूस करे वो इंसा कहां से लाऊं वो इंसा कहां से लाऊं।   तनहाई को दूर कर दे वो साज कहां से लाऊं वो साज कहां से लाऊं आंसू पोंछ सके वो सखा कहां से लाऊं वो सखा कहां से लाऊं प्यासी धरती की प्यास मिटाएं वो बादल कहां से लाऊं वो बादल कहां से लाऊं सिर को आराम दे वो तकिया कहां से लाऊं वो तकिया कहां से लाऊं द्रोपदी की लाज बचाने वाला वो भगवान कहां से लाऊं वो भगवान कहां से लाऊं दर्द को महसूस करे वो इंसा कहां से लाऊं वो इंसा कहां से लाऊं। -   नरेन्द्र सिंह राठौड़ 

Gam ke badal chhant janyenge -गम के बादल छंट जाएंगे

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गम के बादल छंट जाएंगे आशा की किरण दस्तक देगी तुझे पढ़ना होगा  आज ज़माना अपना नहीं है तो क्या कल तेरा  अपना मुकाम होगा तुझे पढ़ना होगा जो करे मेहनत  उसे कभी ना हारते देखा हर दिन मने दिवाली इस खातिर ज्ञान का दीपक जलाए रखना होगा तुझे पढ़ना होगा आंच ना लगा पाए कोई अपना दामन बचाना होगा तुझे पढ़ना होगा आज है हर कोई बेगाना तो क्या समेट कर अपने दर्द को आगे बढ़ना होगा कलम की स्याही से अपना नसीब  खुद लिखना होगा तुझे पढ़ना होगा। - नरेन्द्र सिंह राठौड़

Bharat tujhe jagna hoga-भारत तुझे जगना होगा

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भारत तुझे जगना होगा  लिए तिरंगा हाथ अमन को लगाए आग  उनसे बचना होगा भारत तुझे जगना होगा। जो तिरंगे को लिए हाथ भारत का बढ़ाए सम्मान उनके साथ जाना होगा भारत तुझे जगना होगा। जो पैदा करे दरार भरम का करके प्रहार उन्हें जवाब  देने तुझे आगे आना होगा भारत तुझे जगना होगा। जो उत्पीड़ित को गले लगाने से करे इन्कार उन्हें लगाने फटकार तुझे आगे बढ़ना होगा भारत तुझे जगना होगा । - नरेन्द्र सिंह राठौड़ 

Kar gujar aisa judge ki kalam na tute -कर गुजर ऐसा जज की कलम ना टूटे

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कर गुजर ऐसा जज की कलम ना टूटे।  बसा लेता क्यों नहीं दिल में रब को जो खड़ा रहता है तेरे साथ विवेक बन कर के जब लिया जब जन्म तूने मां बाप ने नाजों से पाला था और बड़ा होगा बेटा मेरा बनेगा बुढ़ापे का सहारा मगर क्या पता था करेगा इक दिन बुरी संगत और तेरे हाथों होगी इंसानियत शर्मसार और बनेगा तू एक रोड़ा जिसने किसी की रूह को दरिंदा तो कभी  हत्यारा बनकर तोड़ा अब कहता है जज से तू भैया कर दे मुझ पर दया मगर ये अब हो नहीं सकता मैं जज हूं कहलाता हूं कानून का रखवाला जो करता है मानवता को चकनाचूर उसके साथ रहम की उम्मीद हो जाती है दूर फिर कहता हूं कर गुजर ऐसा जज की कलम ना टूटे। - नरेन्द्र सिंह राठौड़

Wo bhi kya din the-वो भी दिन क्या दिन थे ?

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वो भी क्या भी दिन थे ?   राह  में जब कभी बस रुकती  किसी अजनबी के हाथों पानी और बिस्किट मंगवाते थे । हाथ में होता था मक्के का रोट और मक्खन और सरसों का साग जिसका बगल वाले अजनबी दोस्त के संग बांटकर चटकारा मारा करते थे। गपशप करते हुए रास्ते का फासला कम करते थे। आज बात करते है तो मन ही मन कहता है साला पागल है । आज के दिन देखते है बस में  लिखा होता है कि किसी अजनबी से कुछ ना ले। इंसान इतना लालची हो गया बातों में लेकर बहोशी का बिस्किट खिला कर चपत लगा देता है। घर में रखा नौकर कोई लूट रहा और कोई मार रहा । विरला ही है जो साथ निभा रहा है। कुत्ता जानवर  होकर भी पूर्ण निष्ठा से इंसान के साथ अपनी वफादारी निभा रहा है। हर कोई उदास है और हंसी गायब है क्योंकि घर में साथ साथ खाना खिलाने वाली थाली रसोई से गायब है। अब तो फंक्शन हो या घर प्लेट का राज कायम है तभी तो रिश्तों में संवाद कम है।मस्तक पटल पर प्रश्न चिन्ह उठता है, " वो भी क्या दिन थे? -नरेन्द्र सिंह राठौड़

Teri jheel si aankhon me -तेरी झील सी आंखों में

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तेरी झील सी आंखों में तैरने चले जाऊं मैं   पलकें बंद कर लो तुम तो तैरकर बाहर निकल ना पाऊं मैं तेरी आंखों में बसी है जो गमों की तस्वीरें रुकना जरा उन्हें मैं  अपनी पलकों  से उठा उठा कर किनारे लगा दूं मैं तेरी झील सी आंखों में तैरने चले जाऊं मैं पलकें बंद कर लो तुम तो तैरकर बाहर निकल ना पाऊं मैं तेरी आंखो में है जो बचपन की यादें  रुकना जरा अपनी पलकों से अनमोल हीरों की तरह सजा  दूं मैं तेरी झील सी आंखों में तैरने चले जाऊं मैं पलकें बंद कर लो तुम तो तैरकर बाहर निकल ना पाऊं मैं। तेरी आंखों की गहराई में  मुझे खजाना नजर आया रुकना जरा तेरी मेरी  हसीन यादों की इबारत देखी उसे सजा दूं मैं तेरी झील सी आंखों में तैरने चले जाऊं मैं पलकें बंद कर लो तुम तो तैरकर बाहर निकल ना पाऊं मैं तेरी हसीन आंखों की तलहटी में  रब नज़र आया मुझे रुकना जरा कह देने दे रब से  तूझे अगर दिया  आंसू पूजा ना करूंगा मैं तेरी झील सी आंखों में तैरने चले जाऊं मैं पलकें बंद कर लो तुम तो तैरकर बाहर निकल ना पाऊं मैं । -नरेन्द्र सिंह राठौ...